Bihar Board Class 10 Hindi Gadya Chapter 1 Solutions

हम बिहार बोर्ड मैट्रिक छात्रों के लिए पूरे अध्याय के हल प्रदान करते हैं। इस अध्याय में श्रम के विभाजन और जाति प्रथा के बारे में चर्चा की गई है। हम इस अध्याय के सभी प्रश्नों के समाधान प्रदान करते हैं, जो कि बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा में आते हैं।

Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 1 - श्रम विभाजन और जाति प्रथा Solutions

हम अध्याय के हर भाग के समाधान को बोधगम्य भाषा में लिखते हैं ताकि छात्रों को समझने में आसानी हो। हम समाधान के साथ-साथ उदाहरण भी प्रदान करते हैं जो छात्रों को अधिक विस्तृत ध्यान से समझने में मदद करते हैं। हम उन छात्रों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं जो बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे हैं

विषय
हिन्दी (गोधूलि भाग 2), गद्य
अध्याय
1. श्रम विभाजन और जाति प्रथा
लेखक
डॉ भीमराव अंबेडकर

लेखक परिचय

डॉ भीमराव अंबेडकर मानव स्वतंत्र पुरोधा और "श्रम और जाति प्रथा विभाजन" के लेखक थे। उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्हें अमेरिका के न्यूयॉर्क में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बड़ौदा के महाराजा का समर्थन मिला और बाद में वे लंदन चले गए। कुछ दिनों तक कानून का अभ्यास करने के बाद, उन्होंने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई और दलितों, महिलाओं और मजदूरों के अधिकारों और सम्मान के लिए अनवरत संघर्ष किया। उन्होंने उनके मानवाधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए अथक प्रयास किया। 6 दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया।

पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ 'श्रम विभाजन और जाति प्रथा' लेखक डॉ. भीमराव अम्बेडकर के प्रसिद्ध भाषण 'श्रम विभाजन और जाति प्रथा' का एक अंश है। यह भाषण लाहौर में जाट-पात तोड़क मंडल के वार्षिक सम्मेलन के लिए तैयार किया गया था, लेकिन आयोजकों की असहमति के कारण इसे प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी गई थी। भारतीय समाज में जाति के आधार पर जिस सहजता से भेदभाव किया जाता है, लेखक उसका विरोध करता है। इस लेख के माध्यम से लोगों में मानवता, सामाजिक समरसता, भाईचारा आदि मानवीय गुणों का विकास करने का प्रयास किया गया है। लेखक के अनुसार एक आदर्श समाज में समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा अनिवार्य है।

डॉ अम्बेडकर एक प्रमुख नेता थे जिन्होंने महिलाओं, मजदूरों और अछूतों सहित समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उनकी शिक्षाएं और विचार लोगों को भेदभाव के खिलाफ लड़ने और न्यायपूर्ण समाज की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। पाठ लोगों को श्रम के महत्व को समझने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है और इसे जाति के आधार पर कैसे विभाजित नहीं किया जाना चाहिए। भारत में जाति व्यवस्था ने ऐतिहासिक रूप से लोगों के कुछ समूहों के शोषण और उत्पीड़न का नेतृत्व किया है, और एक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज के विकास के लिए इसे समाप्त करना आवश्यक है। समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे पर आधारित समाज की लेखक की दृष्टि संपूर्ण मानवता के लिए एक प्रासंगिक और आवश्यक लक्षय है।

पाठ का सारांश

लेख "श्रम विभाजन और जाति प्रथा" जाति के आधार पर असमानता के खिलाफ लेखक के विचारों पर चर्चा करता है। लेखक स्वीकार करते हैं कि आज के समाज में भी, कुछ लोग "जातिवाद" की कड़वी अवधारणा का समर्थन करते हैं, यह तर्क देते हुए कि कौशल विकास के लिए श्रम विभाजन आवश्यक है, क्योंकि जाति व्यवस्था श्रम विभाजन का ही एक रूप है। हालाँकि, लेखक का कहना है कि "जातिवाद" ने श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन का भी रूप ले लिया है। श्रम विभाजन किसी भी सभ्य समाज के लिए आवश्यक है, लेकिन भारत की जाति व्यवस्था श्रमिकों के बीच श्रम के अप्राकृतिक विभाजन का कारण बनती है, जिससे विभिन्न समूहों के बीच असमानता और पदानुक्रम पैदा होता है।

लेखक का तर्क है कि जाति के आधार पर श्रम विभाजन दुनिया भर के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता है। भले ही जाति व्यवस्था को श्रम विभाजन का एक रूप माना जाए, यह अप्राकृतिक है क्योंकि यह व्यक्तिगत प्राथमिकताओं या क्षमताओं पर आधारित नहीं है। इसलिए, एक सक्षम समाज का उत्तरदायित्व व्यक्तियों को उनकी रुचि या योग्यता के अनुसार अपना पेशा या कार्य चुनने में सक्षम बनाना है। जाति व्यवस्था का विपरीत सिद्धांत एक भ्रष्ट विचारधारा है जो लोगों को उनके माता-पिता की सामाजिक स्थिति के अनुसार पेशा अपनाने के लिए मजबूर करती है। जाति व्यवस्था में व्यक्ति के व्यवसाय का निर्धारण गर्भधारण के समय ही कर दिया जाता है, जो कि अनुचित है।

Bihar Board Class 10 Hindi Gadya Chapter 1 - श्रम विभाजन और जाति प्रथा Solutions

बोध और अभ्यास

Q1. लेखक किस विडंबना की बात करते हैं ? विडंबना का स्वरूप क्या है ?

उत्तर - लेखक महोदय आधुनिक युग में भी “जातिवाद” के पोषकों की कमी नहीं है जिसे विडंबना कहते हैं। विडंबना का स्वरूप यह है कि आधुनिक सभ्य समाज “कार्य-कुशलता” के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है। चूंकि जाति प्रथा भी श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है इसलिए . इसमें कोई बुराई नहीं है।

Q2. जातिवाद के पोषक उसके पक्ष में क्या तर्क देते हैं ?

उत्तर - ‘जातिवाद के पोषक ‘जातिवाद’ के पक्ष में अपना तर्क देते हुए उसकी उपयोगिता को सिद्ध करना चाहते हैं :

जातिवादियों का कहना है कि आधुनिक सभ्य समाज कार्य कुशलता’ के लिए श्रम-विभाजन को आवश्यक मानता है क्योंकि श्रम-विभाजन जाति प्रथा का ही दूसरा रूप है। इसीलिए श्रम-विभाजन में कोई बुराई नहीं है।

जातिवादी समर्थकों का कहना है कि माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार ही यानी गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
हिन्दू धर्म पेशा-परिवर्तन की अनुमति नहीं देता। भले ही वह पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त ही क्यों न हो। भले ही उससे भूखों मरने की नौबत आ जाए लेकिन उसे अपनाना ही होगा।

जातिवादियों का कहना है कि परंपरागत पेशे में व्यक्ति दक्ष हो जाता है और वह अपना कार्य सफलतापूर्वक संपन्न करता है।
जातिवादियों ने ‘जातिवाद’ के समर्थन में व्यक्ति की स्वतंत्रता को अपहृत कर सामाजिक बंधन के दायरे में ही जीने-मरने के लिए विवश कर दिया है। उनका कहना है कि इससे सामाजिक व्यवस्था बनी रहती है और अराजकता नहीं फैलती।

Q3. जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्कों पर लेखक की प्रमुख आपत्तियाँ क्या हैं ?

उत्तर - ‘जातिवाद’ के पक्ष में दिए गए तको पर लेखक ने कई आपत्तियाँ उठायी हैं

  1. लेखक के दृष्टिकोण में जाति प्रथा गंभीर दोषों से युक्त है।
  2. जाति प्रथा का श्रम विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं करता।
  3. मनुष्य की व्यक्तिगत भावना या व्यक्तिगत रुचि का इसमें कोई स्थान या महत्त्व नहीं रहता।
  4. आर्थिक पहलू से भी अत्यधिक हानिकारक जाति प्रथा है।
  5. जाति प्रथा मनुष्य की स्वाभाविक प्रेरणा, रुचि व आत्मशक्ति को दबा देती है। साथ ही अस्वाभाविक नियमों में जकड़ कर निष्क्रिय भी बना देती है।

Q4. जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कही जा सकती?

उत्तर - भारतीय समाज में जाति श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप नहीं कही जा सकती है। श्रम के नाम पर श्रमिकों का विभाजन है। श्रमिकों के बच्चे को अनिच्छा से अपने बपौती काम करना पड़ता है। जो आधुनिक समाज के लिए स्वभाविक रूप नहीं है।

Q5. जातिप्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई है?

उत्तर - ‘जातिप्रथा मनुष्य को जीवनभर के लिए एक ही पेशे में बांध देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में उद्योग-धंधों की प्रक्रिया तथा तकनीक में निरंतर विकास और अकस्मात् परिवर्तन होने के कारण मनुष्य को पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है। किन्तु, भारतीय हिन्दू धर्म की जाति प्रथा व्यक्ति को पारंगत होने के बावजूद ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है जो उसका पैतृक पेशा न हो। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।

Q6. लेखक आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या किसे मानते हैं और क्यों?

उत्तर -लेखक आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या जाति प्रथा को मानते हैं। जाति प्रथा के कारण पेशा चुनने में स्वतंत्रता नहीं होती। मनुष्य की व्यक्तिगत भावना तथा व्यक्तिगत रूची का इसमें कोई स्थान नहीं होता। मजबुरी बस जहाँ काम करने वालों का न दिल लगता हो न दिमाग कोई कुशलता कैसे प्राप्त की जा सकती है। अतः यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो जाता है कि आर्थिक पहलू से भी जाति प्रथा हानिकारक प्रथा है।

Q7. लेखक ने पाठ में किन प्रमुख पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में दिखाया है ?

उत्तर - जाति प्रथा के कारण श्रमिकों का अस्वभाविक विभाजन हो गया है। आपस में ऊँच-नीच की भावना भी विद्यमान है।
जाति प्रथा के कारण अनिच्छा से पुस्तैनी पेशा अपनाना पड़ता है। जिसके कारण मनुष्य की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं होता। आर्थिक विकास में भी जातिप्रथा बाधक है।

Q8. सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक ने किन विशेषताओं को आवश्यक माना है?

उत्तर - डॉ. भीमराव अंबेदकर ने सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए निम्नांकित विशेषताओं का उल्लेख किया है:

  1. सच्चे लोकतंत्र के लिए समाज में स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व भावना की वृद्धि हो।
  2. समाज में इतनी गतिशीलता बनी रहे कि कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचालित हो सके।
  3. समाज में बहुविध हितों में सबका भाग होना चाहिए और सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए।
  4. सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए।
  5. दूध-पानी के मिश्रण की तरह भाईचारा होना चाहिए।
  6. इन्हीं गुणों या विशेषताओं से युक्त तंत्र का दूसरा नाम लोकतंत्र है।
  7. “लोकतंत्र शासन की एक पद्धति नहीं है, लोकतंत्र मूलतः सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। इसमें यह आवश्यक है कि अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान भाव हो।”

Bihar Board Class 10 Hindi Gadya Chapter 1 - श्रम विभाजन और जाति प्रथा Objective Questions and Answers

1.   " निबंध ' है

( A ) श्रमविभाजन और जाति प्रथा

( B ) नागरी लिपि

( C ) परंपरा का मूल्यांकन

( D ) उपर्युक्त सभी

2.  बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के विख्यात भाषण का संशोधित रूप है - ' श्रमविभाजन और जाति प्रथा '

( A ) ' द कास्ट इन इंडियाः देयर मैकेनिज्म

( B ) जेनेसिस एण्ड डेवलपमेंट

( C ) एनीहिलेशन ऑफ कास्ट

( D ) बुद्ध एण्ड हिज धम्मा

3.  ' एनीहिलेशन ऑफ कास्ट ' का हिंदी रूपांतरण किया

( A ) ललई सिंह यादव ने

( B ) रामविलास शर्मा ने

( C ) अज्ञेय ' ने

( D ) ' प्रेमचन्द ' ने

4.  बाबा साहेब अंबेडकर का जन्म…… ई ० में हुआ

( A ) 14 अप्रैल 1881

( B ) 14 अप्रैल 1885

( C ) 14 अप्रैल 1886

( D ) 14 अप्रैल 1891

5.  बाबा साहेब अंबेडकर का जन्म किस राज्य में हुआ ?    

( A ) बिहार

( B ) मध्य प्रदेश

( C ) महाराष्ट्र

( D ) उत्तर प्रदेश

6.   बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के प्रेरक थे

( A ) बुद्ध

( B ) कबीर

( C ) ज्योतिबा फुले

( D ) उपर्युक्त सभी

Related Tags : श्रम विभाजन और जाति प्रथा class 10 pdf, श्रम विभाजन और जाति प्रथा Objective PDF, श्रम विभाजन और जाति प्रथा का सारांश, जातिप्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई है, श्रम विभाजन और जाति प्रथा Question Answer, श्रम विभाजन और जाति प्रथा के लेखक कौन हैं, bihar board class 10 hindi chapter 1 question answer, bihar board class 10 hindi book solution objective, bihar board class 10 hindi book solutions, bihar board class 10 hindi chapter 1, bihar board class 10th hindi chapter 1 question answer,

avatar

Bhaskar Singh

I am the founder and author of knowledgewap.org. We provides high-quality, informative content on diverse topics such as technology, science, lifestyle, and personal development. With a passion for knowledge and engaging writing style, We are committed to keeping his readers up-to-date with the latest developments in their fields of interest. Know more